घर मे जलता दीपक, ईक नंदा दीप है,
अंधेरे को उजाले मे बदले, बापू नाम ईक ज्योत है ।।
असुरो से छेडा जिसने, जो एक महायुद्ध है,
मां चंडिका जिसकी सारथी, वो एक विजय रथ है ।।
फिर एक बार, ( किनारे) खडी जिसकी वानर सैना है,
उस नाम से बनेगा सेतू, जो अनिरुद्धराम है ।।
बिन लक्ष जो भेद न लौटे, ऐसे उसके तीर है,
बुराई मे छुपता रावण, उस तीर का एक हि लक्ष है ।।
फिर गुंजेगी विश्व मे, एक हि आवाज,
हर कन कन बोलेगा त्रीविक्रम्कार ।।
मां चंडिका प्रकटेगी, उस ध्वज मे एक बार ,
शांती ब्रह्म अनिरुद्ध, विराजेंगे उस सिंहासन पार ।।
तब आयेगा वह राज्य, होगा वह राम राज्य ,
सुख शांती होगी उस राष्ट्र, जो केह्लायेगा चंडिका राष्ट्र ।।
- अभिजित सिंह जोशी , निगडी - पुणे